( तर्ज लीजो लीजो खबरिया ० )
प्यारे ! उमरीया खो मत , मान मेरा ।
करले नेकी जगतमें ,
न सोचो बुरा ॥ टेक ॥
भागसे पाया जनम न खो बुराइमें ।
साधले प्रभुकी दया तू इस हुशारिमें ।
काहे भटक भटक
जीया देत हरा ॥ १ ॥
खेलके जुगार ,
माल - धन गमा दिया ।
चोरि जारि कर हमेश
नाक कट लिया ।
गठरी पापोंकी संगमे
यह काहे भरा ? ॥२ ॥
भूलके विषयों में
उमर यार ! खो दिया ।
पल कहीं उपकार
किसीपे नहीं किया ।
कुलको दाग लगा ,
किया नाश पूरा ॥ ३ ॥
अब रही जो साधले ,
गईको भूलके ।
नेकि कर जगतमें
प्रभू - नाम ले लखे ।
कहत तुकड्या ,
जनम यह सुधार तेरा ॥ ४ ॥
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